भीड़ भरी सड़क पे चलता हूँ कहीं
और जब लेता हूँ एक मिठीसी अँगड़ाही
पलखे झुकाती हुई देखती है वो हर घडिं
ज़िंदा हूँ मैं यहीं और ज़िंदा है वो भी कहीं
उस दूर बसे किसी जहां में मिलना तो शायद किस्मत में है भी या नहीं
पर ज़रूरी है की आज इस मोड़ पर चलता रहूँ
शायद ये रास्ता लेकर जाये उस जहां में कहीं
ज़िंदा होने की वजह समझ आये तभी
जब मुस्कुराते हुएं वो मेरी खुली अँगड़ाही में गले से लागले कहीं